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दसवीं पुतली - प्रभावती

दसवीं पुतली - प्रभावती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है-

एक बार राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते अपने सैनिकों की टोली से काफी आगे निकलकर जंगल में भटक गए। उन्होंने इधर-उधर काफी खोजा, पर उनके सैनिक उन्हें नज़र नहीं आए। उसी समय उन्होंने देखा कि एक सुदर्शन युवक एक पेड़ पर चढ़ा और एक शाखा से उसने एक रस्सी बाँधी। रस्सी में फंदा बना था उस फन्दे में अपना सर डालकर झूल गया। विक्रम समझ गए कि युवक आत्महत्या कर रहा है। उन्होंने युवक को नीचे से सहारा देकर फंदा उसके गले से निकाला तथा उसे डाँटा कि आत्महत्या न सिर्फ पाप और कायरता है, बल्कि अपराध भी है। इस अपराध के लिए राजा होने के नाते वे उसे दण्डित भी कर सकते हैं। युवक उनकी रोबीली आवाज़ तथा वेशभूषा से ही समझ गया कि वे राजा है, इसलिए भयभीत हो गया।

राजा ने उसकी गर्दन सहलाते हुए कहा कि वह एक स्वस्थ और बलशाली युवक है फिर जीवन से निराश क्यों हो गया। अपनी मेहनत के बल पर वह आजीविका की तलाश कर सकता है। उस युवक ने उन्हें बताया कि उसकी निराशा का कारण जीविकोपार्जन नहीं है और वह विपन्नता से निराश होकर आत्महत्या का प्रयास नहीं कर रहा था। राजा ने जानना चाहा कि कौन सी ऐसी विवशता है जो उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित कर रही है। उसने जो बताया वह इस प्रकार है- उसने कहा कि वह कालिं का रहने वाला है तथा उसका नाम वसु है। एक दिन वह जंगल से गुज़र रहा था कि उसकी नज़र एक अत्यन्त सुन्दर लड़की पर पड़ी। वह उसके रूप पर इतना मोहित हुआ कि उसने उससे उसी समय प्रणय निवेदन कर डाला।

उसके प्रस्ताव पर लड़की हँस पड़ी और उसने उसे बताया कि वह किसी से प्रेम नहीं कर सकती क्योंकि उसके भाग्य में यही बदा है। दरअसल वह एक अभागी राजकुमारी है जिसका जन्म ऐसे नक्षत्र में हुआ कि उसका पिता ही उसे कभी नहीं देख सकता अगर उसके पिता ने उसे देखा, तो तत्क्षण उसकी मृत्यु हो जाएगी। उसके जन्मतें ही उसके पिता ने नगर से दूर एक सन्यासी की कुटिया में भेज दिया और उसका पालन पोषण उसी कुटिया में हुआ। उसका विवाह भी उसी युवक से संभव है जो असंभव को संभव करके दिखा दे। उस युवक को खौलते तेल के कड़ाह में कूदकर ज़िन्दा निकलकर दिखाना होगा।

उसकी बात सुनकर वसु उस कुटिया में गया जहाँ उसके निवास था। वहाँ जाने पर उसने कई अस्थि पंजर देखे जो उस राजकुमारी से विवाह के प्रयास में खौलते कड़ाह के तेल में कूदकर अपनी जानों से हाथ धो बैठे थे। वसु की हिम्मत जवाब दे गई। वह निराश होकर वहाँ से लौट गया। उसने उसे भुलाने की लाख कोशिश की, पर उसका रूप सोते-जागते, उठते-बैठते- हर वक्त आँखों के सामने आ जाता है। उसकी नींद उड़ गई है। उसे खाना-पीना नहीं अच्छा लगता है। अब प्राणान्त कर लेने के सिवा उसके पास कोई चारा नही बचा है।

विक्रम ने उसे समझाना चाहा कि उस राजकुमारी को पाना सचमुच असंभव है, इसलिए वह उसे भूलकर किसी और को जीवन संगिनी बना ले, लेकिन युवक नहीं माना। उसने कहा कि विक्रम ने उसे व्यर्थ ही बचाया। उन्होंने उसे मर जाने दिया होता, तो अच्छा होता। विक्रम ने उससे कहा कि आत्महत्या पाप है, और यह पाप अपने सामने वह नहीं होता देख सकते थे। उन्होंने उसे वचन दिया कि वे राजकुमारी से उसका विवाह कराने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। फिर उन्होंने माँ काली द्वारा प्रदत्त दोनो बेतालों का स्मरण किया। दोनों बेताल पलक झपकते ही उपस्थित हुए तथा कुछ ही देर में उन दोनों को लेकर उस कुटिया में आए जहाँ राजकुमारी रहती थी। वह बस कहने को कुटिया थी। राजकुमारी की सारी सुविधाओं का ख्याल रखा गया था। नौकर-चाकर थे।

राजकुमारी का मन लगाने के लिए सखी-सहेलियाँ थीं। तपस्वी से मिलकर विक्रमादित्य ने वसु के लिए राजकुमारी का हाथ मांगा। तपस्वी ने राजा विक्रमादित्य का परिचय पाकर कहा कि अपने प्राण वह राजा को सरलता से अर्पित कर सकता है, पर राजकुमारी का हाथ उसी युवक को देगा जो खौलते तेल से सकुशल निकल आए, तो किसी अन्य के लिए राजकुमारी का हाथ मांग सकता है या नहीं। इस पर तपस्वी ने कहा कि बस यह शर्त पूरी होनी चाहिए। वह अपने लिए हाथ मांग रहा है या किसी अन्य के लिए, यह बात मायने नहीं रखती है। उसने राजा को विश्वास दिलाने की कोशिश की कि इस राजकुमारी को कुँआरी ही रहना पड़ेगा। जब विक्रम ने उसे बताया कि वे खुद ही इस युवक के हेतु कड़ाह में कूदने को तैयार हैं तो तपस्वी का मुँह विस्मय से खुला रहा गया। वे बात ही कर रहे थे कि राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ वहाँ आई। वह सचमुच अप्सराओं से भी ज्यादा सुन्दर थी। अगर युवकों ने खौलते कड़ाह में कूदकर प्राण गँवाए, तो कोई गलत काम नहीं किया।

विक्रम ने तपस्वी से कहकर कड़ाह भर तेल की व्यवस्था करवाई। जब तेल एकदम खौलने लगा, तो माँ काली को स्मरण कर विक्रम तेल में कूद गए। खौलते तेल में कूदते ही उनके प्राण निकल गए और शरीर भुनकर स्याह हो गया। माँ काली को उन पर दया आ गई और उन्होंने बेतालों को विक्रम को जीवित करने की आज्ञा दी। बेतालों ने अमृत की बून्दें उनके मुँह में डालकर उन्हें ज़िन्दा कर दिया। जीवित होते ही उन्होंने वसु के लिए राजकुमारी का हाथ मांगा। राजकुमारी के पिता को खबर भेज दी गई और दोनों का विवाह धूम-धाम से सम्पन्न हुआ।

सिंहासन बत्तिसी

संकलित
Chapters
राजा भोज पहली पुतली - रत्नमंजरी दूसरी पुतली - चित्रलेखा तीसरी पुतली - चन्द्रकला चौथी पुतली - कामकंदला पाँचवीं पुतली - लीलावती छठी पुतली - रविभामा सातवीं पुतली - कौमुदी आठवीं पुतली - पुष्पवती नवीं पुतली - मधुमालती दसवीं पुतली - प्रभावती ग्यारहवीं पुतली - त्रिलोचनी बारहवी पुतली - पद्मावती तेरहवीं पुतली - कीर्तिमती चौदहवीं पुतली - सुनयना पन्द्रहवीं पुतली - सुंदरवती सोलहवीं पुतली - सत्यवती सत्रहवीं पुतली - विद्यावती अठारहवीं पुतली - तारामती उन्नीसवी पुतली - रूपरेखा बीसवीं पुतली - ज्ञानवती इक्कीसवीं पुतली - चन्द्रज्योति बाइसवीं पुतली - अनुरोधवती तेइसवीं पुतली - धर्मवती चौबीसवीं पुतली - करुणावती पच्चीसवीं पुतली - त्रिनेत्री छब्बीसवीं पुतली - मृगनयनी सताइसवीं पुतली - मलयवती अट्ठाइसवीं पुतली - वैदेही उन्तीसवीं पुतली - मानवती तीसवीं पुतली - जयलक्ष्मी इकत्तीसवीं पुतली - कौशल्या बत्तीसवीं पुतली - रानी रूपवती