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चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 4

अब हम अपने पाठकों को कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की तरफ ले चलते हैं जिन्हें जमानिया के तिलिस्म में नहर के किनारे पत्थर की चट्टान पर बैठकर राजा गोपालसिंह से बातचीत करते छोड़ आए हैं।

दोनों कुमार बड़ी देर तक राजा गोपालसिंह से बातचीत करते रहे। राजा साहब ने बाहर का सब हाल दोनों भाइयों के कहा और यह भी कहा कि किशोरी और कामिनी राजी-खुशी के साथ कमलिनी के तालाब वाले मकान में जा पहुंचीं, अब उनके लिए चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।

किशोरी और कामिनी का शुभ समाचार सुनकर दोनों भाई बड़े प्रसन्न हुए। राजा गोपालसिंह से इन्द्रजीतसिंह ने कहा, “हम चाहते हैं कि इस तिलिस्म से बाहर होकर पहिले अपने मां-बाप से मिल आवें क्योंकि उनका दर्शन किए बहुत दिन हो गए और वे भी हमारे लिए बहुत उदास होंगे।”

गोपाल - मगर यह तो हो नहीं सकता।

इन्द्र - सो क्यों?

गोपाल - जब तक आप बाहर जाने के लिए रास्ता न बना लेंगे बाहर कैसे जायंगे और जब तक इस तिलिस्म को आप तोड़ न लेंगे तो बाहर जाने का रास्ता कैसे मिलेगा?

इन्द्र - जिस राह से आप यहां आए हैं या आप जायंगे उसी रास्ते से आपके साथ अगर हम लोग भी चले जायें तो कौन रोक सकता है?

गोपाल - वह रास्ता केवल मेरे ही आने-जाने के लिए है, आप लोगों के लिए नहीं।

इन्द्र - (हंसकर) क्योंकि आपसे हम लोग मोटे-ताजे ज्यादे हैं, दरवाजे में अंट न सकेंगे!

गोपाल - (हंसकर) आप भी बड़े मसखरे हैं, मेरा मतलब यह नहीं है कि मैं जान-बूझकर आपको नहीं ले जाता बल्कि यहां के नियमों का ध्यान करके मैंने ऐसा कहा था, आपने तिलिस्मी किताब में पढ़ा ही होगा।

इन्द्र - हां हम पढ़ तो चुके हैं और उससे यह मालूम भी होता है कि हम लोग बिना तिलिस्म तोड़े बाहर नहीं जा सकते, मगर अफसोस यही है कि उस किताब का लिखने वाला हमारे सामने मौजूद नहीं है। अगर होता तो पूछते कि क्यों नहीं जा सकते जिस राह से राजा साहब आए उसी राह से उनके साथ जाने में क्या हर्ज है

गोपाल - किसी तरह का हर्ज होगा तभी तो बुजुर्गों ने ऐसा लिखा है! कौन ठिकाना किसी तरह की आफत आ जाये तो जनम भर के लिए मैं बदनाम हो जाऊंगा, अस्तु आपको भी इसके लिए जिद न करनी चाहिए, हां यदि अपने उद्योग से आप बाहर जाने का रास्ता बना लें तो बेशक चले जायं।

इन्द्र - (मुस्कुराकर) बहुत अच्छा आप जाइये, हम अपने लिए रास्त ढूंढ़ लेंगे।

गोपाल - (हंसकर) मेरे पीछे-पीछे चलकर! अच्छा आइए।

यह कहकर गोपालसिंह उठ खड़े हुए और उसी कुएं पर चले गए जिसमें पहिले दफे उस वक्त कूदकर गायब हो गये थे जब बुड्ढे की सूरत बनकर आए थे। दोनों कुमार भी मुस्कुराते हुए उनके पीछे-पीछे गए और पास पहुंचने के पहिले ही उन्होंने राजा गोपालसिंह को कुएं के अन्दर कूद पड़ते देखा। यह कुआं यद्यपि बहुत चौड़ा था तथापि नीचे के हिस्से में सिवाय अंधकार के और कुछ भी दिखाई न देता था। दोनों कुमार भी जल्दी से उसी कुएं पर गए और बारी - बारी से कुछ विलम्ब करके कुएं के अन्दर कूद पड़े।

हम पहिले आनन्दसिंह का हाल लिखते हैं जो इन्द्रजीतसिंह के बाद उस कुएं में कूदे थे। आनन्दसिंह सोचे हुए थे कि कुएं में कूदने के बाद अपने भाई से मिलेंगे मगर ऐसा न हुआ। जब उनका पैर जमीन पर लगा तो उन्होंने अपने को नर्म-नर्म घास पर पाया जिसकी ऊंचाई या तौल का अन्दाज नहीं कर सकते थे और उसी के सबब से उन्हें चोट की तकलीफ भी बिल्कुल उठानी न पड़ी। अंधकार के सबब से कुछ मालूम न पड़ता था इसलिए दोनों हाथ आगे बढ़ाकर कुंअर आनन्दसिंह उस कुएं में घूमने लगे। तब मालूम हुआ कि नीचे से यह कुआं बहुत चौड़ा है और उसकी दीवार चिकनी तथा संगीन है। टटोलते और घूमते हुए एक छोटे से बन्द दरवाजे पर इनका हाथ पड़ा, वहां ठहर गये और कुछ सोचकर आगे बढ़े। तीन-चार कदम के बाद फिर एक बन्द दरवाजा मिला, उसे भी छोड़ और आगे बढ़े। इसी तरह घूमते हुए इन्हें चार दरवाजे मिले जिनमें दो तो खुले हुए थे और दो बन्द। आनन्दसिंह ने सोचा कि बेशक इन्हीं दोनों दरवाजों में से जो खुले हुए हैं किसी एक दरवाजे में कुंअर इन्द्रजीतसिंह गये होंगे। बहुत सोचने-विचारने के बाद आनन्दसिंह ने भी एक दरवाजे के अन्दर पैर रक्खा मगर दो ही चार कदम आगे गए होंगे कि पीछे से दरवाजा बन्द होने की आवाज आई। उस समय उन्हें विश्वास हो गया कि हमने धोखा खाया, कुंअर इन्द्रजीतसिंह किसी दूसरे दरवाजे के अन्दर गये होंगे और वह दरवाजा भी उनके जाने के बाद इसी तरह बन्द हो गया होगा। अफसोस करते हुए आगे की तरफ बढ़े मगर दो ही चार कदम जाने के बाद अंधकार के सबब से जी घबरा गया। उन्होंने कमर से तिलिस्मी खंजर निकालकर कब्जा दबाया जिससे बहुत तेज रोशनी हो गई और वहां की हर एक चीज साफ-साफ दिखाई देने लगी। कुमार ने अपने को एक कोठरी में पाया जिसमें चारों तरफ दरवाजे थे। उनमें एक दरवाजा तो वही था जिससे कुमार आये थे और बाकी तीन दरवाजे बन्द थे और उनकी कुंडियों में ताला लगा हुआ था मगर उस दरवाजे में कोई ताला या ताले का निशान या जंजीर न थी जिससे कुमार आये थे। चारों तरफ की संगीन दीवारों में कई बड़े-बड़े सूराख थे जिनमें से हवा आती और निकल जाती थी। जिस दरवाजे से कुमार आए थे उसके पास जाकर उसे खोलना चाहा मगर किसी तरह से वह दरवाजा न खुला, तब दूसरे दरवाजे के पास आये, तिलिस्मी खंजर से उसकी जंजीर काटकर दरवाजा खोला और उसके अन्दर गए। यह कोठरी बनिस्बत पहिले के तिगुनी लम्बी थी। जमीन और दीवार संगमर्मर की बनी हुई थी और हवा आने-जाने के लिए दीवारों में सूराख भी थे[1] इस कमरे के बीचोंबीच में एक ऊंचा चबूतरा था और उस पर एक बड़ा सन्दूक जो असल में बाजा था रक्खा हुआ था। कुमार के अन्दर आते ही वह बाजा बजने लगा और उसकी सुरीली आवाज ने कुमार का दिल अपनी तरफ खेंच लिया। चारों तरफ दीवारों में बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी हुई थीं जिनमें एक तस्वीर बहुत ही बड़ी और जड़ाऊ चौखटे के अन्दर थी। इस तस्वीर में किसी तरह की चमक देखकर कुमार ने अपने खंजर की रोशनी बन्द कर दी। उस समय मालूम हुआ कि यहां की सब तस्वीरें इस तरह चमक रही हैं कि उनके देखने के लिए किसी तरह की रोशनी की दरकार नहीं। कुमार उस बड़ी तस्वीर को गौर से देखने लगे। देखा कि जड़ाऊ सिंहासन पर एक बूढ़े महाराज बैठे हुए हैं। उम्र अस्सी वर्ष से कम न होगी, सफेद, लम्बी दाढ़ी नाभी तक लटक रही है, जड़ाऊ मुकुट माथे पर चमक रहा है, कपड़ों के सुन्दर बेलों में मोती और जवाहिरात के फूल और बेल-बूटे बने हुए हैं। सामने सोने की चौकी पर एक ग्रन्थ रक्खा हुआ है और पास ही सिंहासन पर मृगछाला बिछाए एक बहुत ही वृद्ध साधु महाशय बैठे हुए हैं जिनके भाव से साफ मालूम होता है कि महात्माजी ग्रन्थ का मतलब महाराज को समझा रहे हैं और महाराज बड़े गौर से सुन रहे हैं। उस तस्वीर के नीचे यह लिखा हुआ था -

'महाराज सूर्यकान्त और उनके गुरु सोमदत्त जिन्होंने इस तिलिस्म को बनाया और इसके कई हिस्से किये। महाराज के दो लड़के थे। एक का नाम धीरसिंह, दूसरे का नाम जयदेवसिंह। जब इस हिस्से की उम्र समाप्त होने पर आवेगी तब धीरसिंह के खानदान में गोपालसिंह और जयदेवसिंह के खानदान में इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह होंगे और नाते में वे तीनों भाई होंगे। इसलिए उसके दो हिस्से किये गए जिनमें से आधे का मालिक गोपालसिंह होगा और आधे के मालिक इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह होंगे। लेकिन यदि उन तीनों में मेल न होगा तो इस तिलिस्म से सिवाय हानि के किसी को भी फायदा न होगा, अतएव चाहिए कि वे तीनों भाई आपस में मेल रक्खें और इस तिलिस्म से फायदा उठावें। इन तीनों के हाथ से इस तिलिस्म के कुल बारह दर्जों में से सिर्फ तीन टूटेंगे और बाकी के नौ दर्जों के मालिक उन्हीं के खानदान में कोई दूसरे होंगे। इसी तिलिस्म में से कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को एक ग्रन्थ प्राप्त होगा जिसकी बदौलत वे दोनों भाई चर्णाद्रि (चुनारगढ़) के तिलिस्म को तोड़ेंगे...।'

इसके बाद कुछ और भी लिखा हुआ था मगर अक्षर इतने बारीक थे कि पढ़ा नहीं जाता था। यद्यपि उनके पढ़ने का शौक आनन्दसिंह को बहुत हुआ मगर लाचार होकर रह गए। उस तस्वीर के बाईं तरफ जो तस्वीर थी उसके नीचे केवल 'धीरसिंह' लिखा हुआ था और दाहिनी तरफ वाली तस्वीर के नीचे 'जयदेवसिंह' लिखा हुआ था। उन दोनों की तस्वीरें नौजवानी के समय की थीं। उसके बाद क्रमशः और भी तस्वीरें थीं और सभी के नीचे नाम लिखा हुआ था।

कुंअर आनन्दसिंह बाजे की सुरीली आवाज सुनते जाते थे और तस्वीरों को भी देखते जाते थे। जब इन तस्वीरों को देख चुके तो अन्त में राजा गोपालसिंह, अपनी और अपने भाई की तस्वीर भी देखी और इस काम में उन्हें कई घंटे लग गए।

इस कमरे में जिस दरवाजे से कुंअर आनन्दसिंह गये थे उसी के ठीक सामने एक दरवाजा और था जो बन्द था और उसकी जंजीर में ताला लगा हुआ था। जब वे घूमते हुए उस दरवाजे के पास गए तब मालूम हुआ कि इसकी दूसरी तरफ से कोई आदमी उस दरवाजे को ठोकर दे रहा है या खोलना चाहता है। कुमार को इन्द्रजीसिंह का खयाल हुआ और सोचने लगे कि ताज्जुब नहीं कि किसी राह से घूमते-फिरते भाई साहब यहां तक आ गए हों। यह खयाल उनके दिल में बैठ गया और उन्होंने तिलिस्मी खंजर से उस दरवाजे की जंजीर काट डाली। दरवाजा खुल गया और एक औरत कमरे में अन्दर आती हुई दिखाई दी जिसके हाथ में एक लालटेन थी और उसमें तीन मोमबत्तियां जल रही थीं। यह नौजवान और हसीन औरत इस लायक थी कि अपनी सुघराई, खूबसूरती, नजाकत, सादगी और बांकपन की बदौलत जिसका दिल चाहे मुट्ठी में कर ले। यद्यपि उसकी उम्र सत्रह-अठारह वर्ष से कम न होगी मगर बुद्धिमानों की बारीक निगाह जांचकर कह सकती थी कि इसने अभी तक मदनमहीप की पंचरंगी वाटिका में पैर नहीं रक्खा और इसकी रसीली कली को समीर के सत्संग से गुदागुदाकर खिल जाने का अवसर नहीं मिला, इसके सतीत्व की अनमोल गठरी पर किसी ने लालच में पड़कर मालिकाना दखल जमाने की नीयत से हाथ नहीं डाला और न इसने अपनी अनमोल अवस्था का किसी के हाथ सट्टा-ठीका या बीमा किया। इसके रूप के खजाने की चौकसी करने वाली बड़ी-बड़ी आंखों के निचले हिस्से में अभी तक ऊदी डोरी पड़ने नहीं पाई थी और न उसकी गर्दन में स्वर-घंटिका का उभार ही दिखाई देता था। इस गोरी नायिका को देखकर कुंअर आनन्दसिंह भौंचक्के रह गए और ललचाई निगाह से देखने लगे। इस औरत ने भी इन्हें एक दफे तो नजर भरकर देखा मगर साथ ही गर्दन नीची कर ली और पीछे की तरफ हटने लगी तथा धीरे-धीरे कुछ दूर जाकर किसी दीवार या दरवाजे की ओट में हो गई जिससे उस जगह फिर अंधेरा हो गया। आनन्दसिंह आश्चर्य, लालच और उत्कंठा के फेर में पड़े रहे, इसलिए खंजर की रोशनी की सहायता से दरवाजा लांघकर वे भी उसी तरफ गए जिधर वह नाजनीन गई थी। अब जिस कमरे में कुंअर आनन्दसिंह ने पैर रक्खा वह बनिस्बत तस्वीरों वाले कमरे के कुछ बड़ा था और उसके दूसरे सिरे पर भी वैसा ही एक दूसरा दरवाजा था जैसा तस्वीर वाले कमरे में था। कुंअर साहब बिना इधर-उधर देखे उस दरवाजे तक चले गये मगर जब उस पर हाथ रक्खा तो बन्द पाया। उस दरवाजे में कोई जंजीर या ताला दिखाई न दिया जिसे खोल या तोड़कर दूसरी तरफ जाते। इससे मालूम हुआ कि इस दरवाजे का खोलना या बन्द करना उस दूसरी तरफ वाले के अधीन है। बड़ी देर तक आनन्दसिंह उस दरवाजे के पास खड़े होकर सोचते रहे मगर इसके बाद जब पीछे की तरफ हटने लगे तो उस दरवाजे के खोलने की आहट सुनाई दी। आनन्दसिंह रुके और गौर से देखने लगे। इतने ही में एक आवाज इस ढंग की आई जिसने आनन्दसिंह को विश्वास दिला दिया कि उस तरफ की जंजीर किसी ने तलवार या खंजर से काटी है। थोड़ी ही देर बाद दरवाजा खुला और कुंअर इन्द्रजीतसिंह दिखाई पड़े। आनन्दसिंह को उस औरत के देखने की लालसा हद से ज्यादे थी और कुछ-कुछ विश्वास हो गया था कि अबकी दफे पुनः उसी औरत को देखेंगे मगर उसके बदले में अपने बड़े भाई को देखा और देखते ही खुश होकर बोले, “मैंने तो समझा था कि आपसे जल्द मुलाकात न होगी परन्तु ईश्वर ने बड़ी कृपा की!”

इन्द्र - मैं भी यही सोचे हुए था, क्योंकि कुएं के अन्दर कूदने के बाद जब मैंने एक दरवाजे में पैर रक्खा तो दो-चार कदम जाने के बाद वह बन्द हो गया, तभी मैंने सोचा कि अब आनन्द से मुलाकात होना कठिन है।

आनन्द - मेरा भी यही हाल हुआ, जिस दरवाजे के अन्दर मैंने पैर रक्खा था वह भी दो-चार कदम जाने के बाद बन्द हो गया था।

इसके बाद कुंअर इन्द्रजीतसिंह उस कमरे में चले आये जिसमें आनन्दसिंह थे, दोनों भाई एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुए और यों बातचीत करने लगे -

आनन्द - इस कोठरी में आपने किसी को देखा था?

इन्द्र - (ताज्जुब से) नहीं तो!

आनन्द - बड़े आश्चर्य की बात है! (कोठरी के अन्दर झांककर) कोठरी तो बहुत बड़ी नहीं है।

इन्द्र - तुम किसे पूछ रहे हो सो कहो?

आनन्द - अभी-अभी एक औरत हाथ में लालटेन लिए मुझे दिखाई दी थी जो इसी कोठरी में घुस गई और इसके थोड़ी ही देर बाद आप आये हैं।

इन्द्र - जब से मैं कुएं में कूदा तब से इस समय तक मैंने किसी दूसरे की सूरत नहीं देखी।

आनन्द - अच्छा यह कहिये कि आप जब कुएं में कूदे तब क्या हुआ और यहां क्योंकर पहुंचे

इन्द्र - कुएं की तह में पहुंचकर जब मैं टटोलता हुआ दीवार के पास पहुंचा तो एक छोटे से दरवाजे पर हाथ पड़ा। मैं उसके अन्दर चला गया। दो ही चार कदम गया था कि पीछे से दरवाजा बन्द हो जाने की आवाज आई। मैंने तिलिस्मी खंजर हाथ में ले लिया और कब्जा दबाकर रोशनी करने के बाद चारों तरफ देखा तो मालूम हुआ कि कोठरी बहुत छोटी है और सामने की तरफ एक दरवाजा और है। खंजर से जंजीर काटकर दरवाजा खोला तो एक कमरा और नजर आया जिसकी लम्बाई पचीस हाथ से कुछ ज्यादे थी। मगर उस कमरे में जो कुछ मैंने देखा कहने योग्य नहीं है बल्कि इस योग्य है कि तुम्हें अपने साथ ले जाकर दिखाऊं। वह कमरा बहुत दूर भी नहीं है। (जिस कोठरी में से आये थे उसे बताकर) इस कोठरी के बाद ही वह कमरा है। चलो तो वहां का विवित्र तमाशा तुम्हें दिखावें।

आनन्द - पहिले इस कमरे को देख लीजिये जिसकी सैर मैं कर चुका हूं।

इन्द्र - मैं समझ गया, जरूर तुमने भी कोई अनूठा तमाशा देखा होगा। (रुककर) अच्छा, चलो पहिले इसी को देख लें।

इतना कहकर आनन्दसिंह के पीछे-पीछे इन्द्रजीतसिंह उस कमरे में गए और जो कुछ उनके छोटे भाई ने देखा था उसे उन्होंने भी बड़े गौर और ताज्जुब के साथ देखा।

इन्द्र - मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि राजा गोपालसिंह नाते में हमारे भाई होते हैं (कुछ सोचकर) मगर इस बात की सच्चाई का कोई और सबूत भी होना चाहिए।

आनन्द - जब इतना मालूम हुआ है तब और भी कोई न कोई सबूत मिल ही जायेगा।

इन्द्र - अच्छा अब हमारे साथ आकर उस कमरे का तमाशा देखो जिसका जिक्र हम कर चुके हैं और इसके बाद सोचो कि हम लोग यहां से क्योंकर निकल सकेंगे क्योंकि जिस राह से यहां आये हैं वह तो बन्द ही हो गई।

आनन्द - जी हां हम दोनों भाइयों को धोखा हुआ, गोपालसिंहजी के साथ कोई भी न जा सका।

इन्द्र - यह कैसे निश्चय हो कि हम लोगों ने धोखा खाया कदाचित् गोपालसिंहजी इसी राह से आते-जाते हों या यहां से बाहर होने के लिए कोई दूसरा ही रास्ता हो!

आनन्द - यह भी हो सकता है। मगर बड़े आश्चर्य की बात है कि खून से लिखी किताब में जिसे हम लोग अच्छी तरह पढ़ चुके हैं, इस जगह तथा इन तस्वीरों का हाल कुछ भी नहीं लिखा है।

इन्द्रजीतसिंह इसका कुछ जवाब न देकर यहां से रवाना हुआ ही चाहते थे कि बाजे की सुरीली आवाज (जो इस कमरे में बोल रहा था) बन्द हो गई और दो-चार पल तक बन्द रहने के बाद पुनः इस ढंग से बोलने लगी जैसे कोई मनुष्य बोलता हो। दोनों कुमारों ने चौंककर उस पर ध्यान दिया तो 'सुनो-सुनो' की आवाज सुनाई पड़ी अर्थात् उस बाजे में से 'सुनो-सुनो' की आवाज आ रही थी। दोनों कुमार उत्कंठा के साथ उसके पास गए और ध्यान देकर सुनने लगे। 'सुनो-सुनो' की आवाज बहुत देर तक निकलती रही, जिस पर इन्द्रजीतसिंह ने यह कहकर कि 'निःसन्देह यह तो कोई मतलब की बात कहेगा' - अपने जेब से एक सादी किताब और जस्ते की कलम निकाली और लिखने के लिए तैयार हो गए। अपना खंजर कमर में रख लिया और आनन्दसिंह को अपने खंजर का कब्जा दबाकर रोशनी करने के लिए कहा। थोड़ी देर तक और 'सुनो-सुनो' की आवाज आती रही और फिर सन्नाटा हो गया। कई पल के बाद फिर धीरे-धीरे आवाज आने लगी और इन्द्रजीतसिंह लिखने लगे। वह आवाज यह थी -

साकरा खति गलि घस्मड़ तो चड़ छनेज

काझ खञ या लठ नड कढ रोण औत

रथ इद सध तिन लिप स्मफ कीब ताभ

लीम किय सीर चल लब तीश फिष

रस तीह' से कप्रा खप्तग कघ

रोड़ इच सछ बाज जेझ में अवेट

सठ बड बांढ तेंण भत रीथ हैंद

जिध नन कीप तुफ म्हेंव जभ रूम

रथ तर हैल ताब लीश लष गास

याह' कक रोख औग रध सुड़

नाच कछ रोज अझ गञ रट एठ

कड हीढ दण फेत सुथ न दनेध सेन

सप मफ झब में भन म आय वेर

तोल दोव हश राष कस यह' के

क भीख सुग नघ सड़ कच तेछ हौज

इझ सञ कीट तठ र्कीड बढ़ औण

रत ताथ लीद इध सीन कष मफ

रेब में भहै म ढूंय ढोर।

इसके बाद बाजे का बोलना बन्द हो गया और फिर किसी तरह की आवाज न आई। कुंअर इन्द्रजीतसिंह जो कुछ लिख चुके थे उस पर गौर करने लगे। यद्यपि वे बातें बेसिर-पैर की मालूम हो रही थीं मगर थोड़ी ही देर में उनका मतलब इन्द्रजीतसिंह समझ गए, तब आनन्दसिंह को समझाया तो वे भी बहुत खुश हुए और बोले, “अब कोई हर्ज नहीं, हम लोगों का कोई काम अटका न रहेगा, मगर वाह रे कारीगरी!”

इन्द्र - निःसन्देह ऐसी ही बात है, मगर जब तक हम लोग उस ताली को पा न लें इस कमरे के बाहर न होना चाहिए, कौन ठिकाना अगर किसी तरह दरवाजा बन्द हो गया और यहां आ न सके तो बड़ी मुश्किल होगी।

आनन्द - मैं भी यही मुनासिब समझता हूं।

इन्द्र - अच्छा तब इस तरफ आओ।

इतना कहकर कुंअर इन्द्रजीतसिंह उस बड़ी तस्वीर की तरफ बढ़े और आनन्द सिंह उनके पीछे चले।

उस आवाज का मतलब जो बाजे में से सुनाई दी थी इस जगह लिखने की कोई आवश्यकता नहीं जान पड़ती क्योंकि हमारे पाठक यदि उन शब्दों पर जरा भी गौर करेंगे तो मतलब समझ जायेंगे कोई कठिन बात नहीं है।

शब्दार्थ:

चंद्रकांता संतति

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 16 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 17 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 8