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दूसरा अध्याय / बयान 14

थोड़ी देर में चपला फलों से झोली भरे हुए पहुंची, देखा तो चंद्रकान्ता वहां नहीं है। इधर-उधर निगाह दौड़ाई, कहीं नहीं। इस टूटे मकान (खण्डहर) में तो नहीं गई है! यह सोचकर मकान के अंदर चली। कुमारी तो बेधाड़क उस खण्डहर में चली गई थी मगर चपला रुकती हुई चारों तरफ निगाह दौड़ाती और एक-एक चीज तजवीज करती हुई चली। फाटक के अंदर घुसते ही दोनों बगल दो दलान दिखाई पड़ेर्। ईंट-पत्थर के ढेर लगे हुए, कहीं से छत टूटी हुई मगर दीवारों पर चित्रकारी और पत्थरों की मूर्तियां अभी तक नई मालूम पड़ती थीं।

चपला ने ताज्जुब की निगाह से उन मूर्तियों को देखा, कोई भी उसमें पूरे बदन की नजर न आई, किसी का सिर नहीं, किसी की टांग नहीं, किसी का हाथ कटा, किसी का आधा धाड़ ही नहीं! सूरत भी इन मूर्तियों की अजब डरावनी थी। और आगे बढ़ी, बड़े-बड़े मिट्टी-पत्थर के ढेर जिनमें जंगली पेड़ लगे हुए थे, लांघती हुई मैदान में पहुंची, दूर से वह बगुला दिखाई पड़ा जिसके पेट में कुमारी पड़ चुकी थी।

सब जगहों को देखना छोड़ चपला उस बगुले के पास धाड़धाड़ाती हुई पहुंची। उसने मुंह खोल दिया। चपला को बड़ा ताज्जुब हुआ, पीछे हटी। बगुले ने मुंह बंद कर दिया। सोचने लगी अब क्या करना चाहिए। यह तो कोई बड़ी भारी ऐयारी मालूम होती है। क्या भेद है इसका पता लगाना चाहिए। मगर पहले कुमारी को खोजना उचित है क्योंकि यह खण्डहर कोई पुराना तिलिस्म मालूम होता है, कहीं ऐसा न हो कि इसी में कुमारी फंस गई हो। यह सोच उस जगह से हटी और दूसरी तरफ खोजने लगी।

चारों तरफ हाता घिरा हुआ था, कई दलान और कोठरियां ढूटी-फूटी और कई साबुत भी थीं, एक तरफ से देखना शुरू किया। पहले एक दलान में पहुंची जिसकी छत बीच से टूटी हुई थी, लंबाई दलान की लगभग सौ गज की होगी, बीच में मिट्टी-चूने का ढेर, इधर-उधर बहुत-सी हड्डी पड़ी हुईं और चारों तरफ जाले-मकड़े लगे हुए थे। मिट्टी के ढेर में से छोटे-छोटे बहुत से पीपल वगैरह के पेड़ निकल आये थे। दलान के एक तरफ छोटी-सी कोठरी नजर आई जिसके अंदर पहुंचने पर देखा एक कुआं है, झांकने से अंधेरा मालूम पड़ा। इस कुएं के अंदर क्या है! यह कोठरी बनिस्बत और जगहों के साफ क्यों मालूम पड़ती है? कुआं भी साफ दीख पड़ता है, क्योंकि जैसे अक्सर पुराने कुओं में पेड़ वगैरह लग जाते हैं, इसमें नहीं हैं, कुछ-कुछ आवाज भी इसमें से आती है जो बिल्कुल समझ नहीं पड़ती। इसका पता लगाने के लिए चपला ने अपने ऐयारी के बटुए में से काफूर निकाला और उसके टुकड़े बालकर कुएं में डाले। अंदर तक पहुंचकर उन बलते हुए काफूर के टुकड़ों ने खूब रोशनी की। अब साफ मालूम पड़ने लगा कि नीचे से कुआं बहुत चौड़ा और साफ है मगर पानी नहीं है बल्कि पानी की जगह एक साफ सफेद बिछावन मालूम पड़ता है जिसके ऊपर एक बूढ़ा आदमी बैठा है। उसकी लंबी दाढ़ी लटकती हुई दिखाई पड़ती है, मगर गर्दन नीची होने के सबब चेहरा मालूम नहीं पड़ता। सामने एक चौकी रखी हुई है जिस पर रंग-बिरंगे फूल पड़े हैं। चपला यह तमाशा देख डर गई। फिर जी को सम्हाला और कुएं पर बैठ गौर करने लगी मगर कुछ अक्ल ने गवाही न दी। वह काफूर के टुकड़े भी बुझ गये जो कुएं के अंदर जल रहे थे और फिर अंधॆरा हो गया।

उस कोठरी में से एक दूसरे दलान में जाने का रास्ता था। उस राह से चपला दूसरे दलान में पहुंची, जहां इससे भी ज्यादे जी दहलाने और डराने वाला तमाशा देखा। कूड़ा-कर्कट, हड्डी और गंदगी में यह दलान पहले दलान से कहीं बढ़ा-चढ़ा था, बल्कि एक साबुत पंजर (ढांचा) हड्डी का भी पड़ा हुआ था जो शायद गदहे या टट्टू का हो। उसी के बगल से लांघती हुई चपला बीचों बीच दलान में पहुंची। एक चबूतरा संगमर्मर का पुरसा भर ऊंचा देखा जिस पर चढ़ने के लिए खूबसूरत नौ सीढ़ियां बनी हुई थीं। ऊपर उसके एक आदमी चौकी पर लेटा हुआ हाथ में किताब लिये कुछ पढ़ता हुआ मालूम पड़ा, मगर ऊंचा होने के सबब साफ दिखाई न दिया। इस चबूतरे पर चढ़े या न चढ़े? चढ़ने से कोई आफत तो न आवेगी! भला सीढ़ी पर एक पैर रखकर देखूं तो सही? यह सोचकर चपला ने सीढ़ी पर एक पैर रखा। पैर रखते ही बड़े जोर से आवाज हुई और संदूक के पल्ले की तरह खुलकर सीढ़ी के ऊपर वाले पत्थर ने चपला के पैर को जोर से फेंक दिया जिसकी धामक और झटके से वह जमीन पर गिर पड़ी। सम्हलकर उठ खड़ी हुई, देखा तो वह सीढ़ी का पत्थर जो संदूक के पल्ले की तरह खुल गया था ज्यों का त्यों बंद हो गया है।

चपला अलग खड़ी होकर सोचने लगी कि यह टूटा-फूटा मकान तो अजब तमाशे का है। जरूर यह किसी भारी ऐयार का बनाया हुआ होगा। इस मकान में घुसकर सैर करना कठिन है, जरा चूके और जान गई। पर मुझको क्या डर क्योंकि जान से भी प्यारी मेरी चंद्रकान्ता इसी मकान में कहीं फंसी हुई है जिसका पता लगाना बहुत जरूरी है। चाहे जान चली जाय मगर बिना कुमारी को लिये इस मकान से बाहर कभी न जाऊंगी? देखूं इस सीढ़ी और चबूतरे में क्या-क्या ऐयारियां की गई हैं? कुछ देर तक सोचने के बाद चपला ने एक दस सेर का पत्थर सीढ़ी पर रखा। जिस तरह पैर को उस सीढ़ी ने फेंका था उसी तरह इस पत्थर को भी भारी आवाज के साथ फेंक दिया।

चपला ने हर एक सीढ़ी पर पत्थर रखकर देखा, सबों में यही करामात पाई। इस चबूतरे के ऊपर क्या है इसको जरूर देखना चाहिए यह सोच अब वह दूसरी तरकीब करने लगी। बहुत से ईंट-पत्थर उस चबूतरे के पास जमा किए और उसके ऊपर चढ़कर देखा कि संगमर्मर की चौकी पर एक आदमी दोनों हाथों में किताब लिए पड़ा है, उम्र लगभग तीस वर्ष की होगी। खूब गौर करने से मालूम हुआ कि यह भी पत्थर का है। चपला ने एक छोटी-सी कंकड़ी उसके मुंह पर डाली, या तो पत्थर का पुतला मगर काम आदमी का किया। चपला ने जो कंकड़ी उसके मुंह पर डाली थी उसको एक हाथ से हटा दिया और फिर उसी तरह वह हाथ अपने ठिकाने ले गया। चपला ने तक एक कंकड़ उसके पैर पर रखा, उसने पैर हिलाकर कंकड़ गिरा दिया। चपला थी तो बड़ी चालाक और निडर मगर इस पत्थर के आदमी का तमाशा देख बहुत डरी और जल्दी वहां से हट गई। अब दूसरी तरफ देखने लगी। बगल के एक और दलान में पहुंची,देखा कि बीचों बीच दलान के एक तहखाना मालूम पड़ता है, नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं और ऊपर की तरफ दो पल्ले किवाड़ के हैं जो इस समय खुले हैं।

चपला खड़ी होकर सोचने लगी कि इसके अंदर जाना चाहिए या नहीं! कहीं ऐसा न हो कि इसमें उतरने के बाद यह दरवाजा बंद हो जाय तो मैं इसी में रह जाऊं, इससे मुनासिब है कि इसको भी आजमा लूं। पहिले एक ढोंका इसके अंदर डालूं लेकिन अगर आदमी के जाने से यह दरवाजा बंद हो सकता है तो जरूर ढोंके के गिरते ही बंद हो जायगा तब इसके अंदर जाकर देखना मुश्किल होगा, अस्तु ऐसी कोई तरकीब की जाय जिससे उसके जाने से किवाड़ बंद न होने पावे, बल्कि हो सके तो पल्लों को तोड़ ही देना चाहिए।

इन सब बातों को सोचकर चपला दरवाजे के पास गई। पहले उसके तोड़ने की फिक्र की मगर न हो सका, क्योंकि वे पल्ले लोहे के थे। कब्जा उनमें नहीं था, सिर्फ पल्ले के बीचोंबीच में चूल बनी हुई थी जो कि जमीन के अंदर घुसी हुई मालूम पड़ती थी। यह चूल जमीन के अंदर कहां जाकर अड़ी थी इसका पता न लग सका।

चपला ने अपने कमर से कमंद खोली और चौहरा करके एक सिरा उसका उस किवाड़ के पल्ले में खूब मजबूती के साथ बांधा, दूसरा सिरा उस कमंद का उसीदलान के एक खंभे में जो किवाड़ के पास ही था बांधा, इसके बाद एक ढोंका पत्थर का दूर से उस तहखाने में डाला। पत्थर पड़ते ही इस तरह की आवाज आने लगी जैसे किसी हाथी में से जोर से हवा निकलने की आवाज आती है, साथ ही इसके जल्दी से एक पल्ला भी बंद हो गया, दूसरा पल्ला भी बंद होने के लिए खिंचा मगर वह कमंद से कसा हुआ था, उसको तोड़ न सका, खिंचा का खिंचा ही रह गया। चपला ने सोचा-”कोई हर्ज नहीं, मालूम हो गया कि यह कमंद इस पल्ले को बंद न होने देगी, अब बेखटके इसके अंदर उतरो, देखो तो क्या है।” यह सोच चपला उस तहखाने में उतरी।

चंद्रकांता दूसरा अध्याय

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
दूसरा अध्याय / बयान 1 दूसरा अध्याय / बयान 2 दूसरा अध्याय / बयान 3 दूसरा अध्याय / बयान 4 दूसरा अध्याय / बयान 5 दूसरा अध्याय / बयान 6 दूसरा अध्याय / बयान 7 दूसरा अध्याय / बयान 8 दूसरा अध्याय / बयान 9 दूसरा अध्याय / बयान 10 दूसरा अध्याय / बयान 11 दूसरा अध्याय / बयान 12 दूसरा अध्याय / बयान 13 दूसरा अध्याय / बयान 14 दूसरा अध्याय / बयान 15 दूसरा अध्याय / बयान 16 दूसरा अध्याय / बयान 17 दूसरा अध्याय / बयान 18 दूसरा अध्याय / बयान 19 दूसरा अध्याय / बयान 20 दूसरा अध्याय / बयान 21 दूसरा अध्याय / बयान 22 दूसरा अध्याय / बयान 23 दूसरा अध्याय / बयान 24 दूसरा अध्याय / बयान 25 दूसरा अध्याय / बयान 26 दूसरा अध्याय / बयान 27